हे यीशु तूने कहा था - ईश्वर इन्हें क्षमा करना...ये नहीं जानते ये क्या कर रहे हैं.
तुम महान थे यीशु...और वे शायद सचमुच नहीं जानते थे कि वे क्या कर रहे थे.
मैं जो अदना इन्सान हूँ सलीब पर हरदम लटकाई जा रही हूँ
और लटकाने वाले खूब सोच समझ कर हर टपकने वाली लहू की बूँद का स्वाद ले रहे हैं
मैं यह मान ही नहीं रही हूँ उनके सामने कि मैं सलीब पर तड़प रही हूँ
उन्हें अपनी पीड़ा का अहसास ही नहीं होने देना चाहती
पर महान यीशु...
मुझे क्षमा करना...
मैं चाहती हूँ कि इश्वर उन्हें कभी क्षमा न करे.
शनिवार, 25 दिसंबर 2010
मंगलवार, 5 जनवरी 2010
avivahit didi: kuchh jhalakiyan
१
सभी बड़े पलंग पर बैठी थीं. मंझली बहन ने कहा- कपूरों की बहू सुन्दर है .
मंझली भाभी ने कहा- परसों बाहर मैं सब्जी ले रही थी तो वो भी आ गयी और ठांह से मेरी बांह पर हाथ मार कर कहने लगी- अरी पूजा, तू तो बिल्कुल बाहर ही नहीं निकलती.
छोटी बहन ने पूछा- कैसे कहा था?
मंझली भाभी उसी के पास बैठी थी. उसने चट से उसकी बांह सीधी की और पूरे जोर से बांह पर एक थप्पड़ मारकर कहा- उसने कहा अरी पूजा तू तो बाहर ही नहीं निकलती.
उसी गोल में सामने बैठी संझली बहन ने जैसे बात सुनी नहीं थी. उसने पूछ लिया- क्या बात हो रही थी?
छोटी बहन ने जवाब दिया- कपूरों की बहू की बात बता रही थी मंझली भाभी.
संझली ने फिर पूछा- क्या?
मंझली भाभी ने फिर बताना शुरू किया- परसों मैं सब्जी ले रही थी तो उसने मुझसे कहा अरी पूजा तू तो बाहर ही नहीं निकलती.और फिर से तडाक से एक जोरदार थप्पड़ उसकी बांह पर मार दिया. सब खिलखिलाकर हँस दीं.
मंझली बहन ने पहले ध्यान नहीं दिया था. अब बोली- क्या हुआ?
मंझली भाभी ने फिर वही बात दोहराते हुए पास बैठी बड़ी ननद की बांह पर फिर वैसा ही जोरदार थप्पड़ लगा दिया.
बड़ी भाभी आँगन से भीतर आती हुई बोली- हाँ, क्या हुआ था?
अब वह उखड गयी थी. उसने कहा- आप यहाँ बैठ जाओ और पूछ लो. बड़ी भाभी के चेहरे पर परछाईं सी उभर आई थी.
सब एकाएक व्यस्त सी उठकर चल दी थीं.
उसकी बांह पर आज भी इस घटना की याद कर तिलमिलाहट महसूस होने लगती है.
२
-अरे यार, पा बहुत ही अच्छी है... तूने देख ली कि नहीं?
-देखी है... अमिताभ की एक्टिंग तो बढ़िया है ही, स्टोरी भी अच्छी है.
-दीदी... आप भी ज़रूर देखना...
-मैं तो दुबारा देखूँगी...
-तुम दोनों ठीक कह रही हो ... मूवी दुबारा देखने लायक है...दीदी आप भी ज़रूर देखना... मुझे भी दुबारा देखनी है.
दीदी सोच रही थी इन चारो में से किसी ने यह नहीं कहा कि दीदी मुझे तो देखने जाना ही है, आप भी मेरे साथ चलना.
सभी बड़े पलंग पर बैठी थीं. मंझली बहन ने कहा- कपूरों की बहू सुन्दर है .
मंझली भाभी ने कहा- परसों बाहर मैं सब्जी ले रही थी तो वो भी आ गयी और ठांह से मेरी बांह पर हाथ मार कर कहने लगी- अरी पूजा, तू तो बिल्कुल बाहर ही नहीं निकलती.
छोटी बहन ने पूछा- कैसे कहा था?
मंझली भाभी उसी के पास बैठी थी. उसने चट से उसकी बांह सीधी की और पूरे जोर से बांह पर एक थप्पड़ मारकर कहा- उसने कहा अरी पूजा तू तो बाहर ही नहीं निकलती.
उसी गोल में सामने बैठी संझली बहन ने जैसे बात सुनी नहीं थी. उसने पूछ लिया- क्या बात हो रही थी?
छोटी बहन ने जवाब दिया- कपूरों की बहू की बात बता रही थी मंझली भाभी.
संझली ने फिर पूछा- क्या?
मंझली भाभी ने फिर बताना शुरू किया- परसों मैं सब्जी ले रही थी तो उसने मुझसे कहा अरी पूजा तू तो बाहर ही नहीं निकलती.और फिर से तडाक से एक जोरदार थप्पड़ उसकी बांह पर मार दिया. सब खिलखिलाकर हँस दीं.
मंझली बहन ने पहले ध्यान नहीं दिया था. अब बोली- क्या हुआ?
मंझली भाभी ने फिर वही बात दोहराते हुए पास बैठी बड़ी ननद की बांह पर फिर वैसा ही जोरदार थप्पड़ लगा दिया.
बड़ी भाभी आँगन से भीतर आती हुई बोली- हाँ, क्या हुआ था?
अब वह उखड गयी थी. उसने कहा- आप यहाँ बैठ जाओ और पूछ लो. बड़ी भाभी के चेहरे पर परछाईं सी उभर आई थी.
सब एकाएक व्यस्त सी उठकर चल दी थीं.
उसकी बांह पर आज भी इस घटना की याद कर तिलमिलाहट महसूस होने लगती है.
२
-अरे यार, पा बहुत ही अच्छी है... तूने देख ली कि नहीं?
-देखी है... अमिताभ की एक्टिंग तो बढ़िया है ही, स्टोरी भी अच्छी है.
-दीदी... आप भी ज़रूर देखना...
-मैं तो दुबारा देखूँगी...
-तुम दोनों ठीक कह रही हो ... मूवी दुबारा देखने लायक है...दीदी आप भी ज़रूर देखना... मुझे भी दुबारा देखनी है.
दीदी सोच रही थी इन चारो में से किसी ने यह नहीं कहा कि दीदी मुझे तो देखने जाना ही है, आप भी मेरे साथ चलना.
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