kavitaayen aur anya srijan
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kamlesh sachdeva
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शुक्रवार, 16 सितंबर 2011
जैसे मेरा मन
इक मुकाम ये भी है कि
गिले-शिकवे, चाहतें, राहतें -
सब पीछे छूट गए हैं
सामने है इक खुला आसमान -
गहरा नीला, चमकता
जैसे गहरा समंदर...शांत
जैसे मेरा मन
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