आओ कि
आओ कि थोड़े समय के लिए
उतार दें अपने-अपने मुखौटे
संजो लें साहस
सच को स्वीकारने का
तुम मुझे बताओ अपने दुःख-दर्द,
झूठ, कपट…
मैं तुम्हें दिखाऊँअपनी बदरंग देह और मन के घाव...
तुम्हारे हाथ अपने मुखौटे पर
कस क्यों रहे हैं?
और मैं भी तो
अपने मुखौटे को उतारने की बजाय
और संवार रही हूँ।
