गुरुवार, 20 मार्च 2014

कैसे ?

आँगन में खिले गुलाब ने 
रंग और गंध की  भाषा में कहा -
कितना  सुन्दर है सब कुछ !
मुस्कुराओ और इसे और सुन्दर बनाओ!

कैसे मुस्कुराती?
घर-गृहस्थी से लेकर देह और मन में 
उगे नुकीले कांटे 
चैन से बैठने तक नहीं देते 
इन फूलों का क्या 
इन्हें तो समाज, परिवार, नैतिक-अनैतिक से 
कुछ लेना-देना है नहीं 
ये कांटे तो हमीं को झेलने हैं..... 

गुलाब का एक और फूल खिला 
गंध और रंग का उत्सव सघनतर हुआ 
मंद बयार में झूमती डाली पर 
फूल भी था, पत्ते भी और कांटे भी।

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