शुक्रवार, 25 सितंबर 2009

दिल की बात करना आजकल आउट ऑफ़ डेट हो गया है पर क्या भावनाओं से रीते हो सकते हैं हम कभी? सही है कि
इंसान भूखा हो तो उसे चाँद भी रोटी जैसा लगता है , यह भी सही है कि भावनाओं को तर्क की तुला पर तुलना जरूरी है तभी वे हमारे लिए, समाज के लिए और व्यापकतर सन्दर्भों में सार्थक या निरर्थक, त्याज्य या ग्राह्य हो पाती हैं लेकिन यह भी तो सही है कि भावनाओं के बिना तो एक जन दूसरे से ही नहीं जुड़ सकता, समाज और विश्व से जुड़ने की तो बात बहुत दूर रह जाती है।

1 टिप्पणी:

  1. kavita to aapki itni psand nahin aaee lekin gadhay aapkey pas bhavpuran, vicharpuran aur sankshipt hai. in karno ls bahut sundar bhi hai.
    sachey logon ke liye dil ki bat kahna na kbhi out of date tha na kabhi hoga. baki samaj se drishti hata kar jeevan ko dekhnee ki koshish bhi karni chahiye

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